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Wednesday, December 19, 2018

Describe his achievement of Harshavardhana in fully details?

Describe his achievement of Harshavardhana in fully details?


अत: उसने अपने विरोध राज्यों की समाप्ति के लिए विजय कार्यक्रम बनाया। हर्ष एक महत्त्वाकांक्षी और पक्रम सम्राट था, वह भी प्राचीन भारतीय चक्रवर्ती सम्राट की नीति का अनुसरण कर सम्य भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था। डॉ. राजबली पाण्डे लिखते हैं कि उसने प्रतिज्ञा की हैं ये 4 चर का पर्श के शपथ खाता हूँ कि यदि में कुछ ही दिनों के भीतर पृथ्वी के गड से रहित न कर दूंगा और समस्त उद्धत राजाओं के पाव की बेड़ियों से पृथ्वी के प्रतिध्वनित न दें तो में जलती हुई अग्नि में अपने को पतंग की भाँति टॉक दूंगा।” दृई की इस प्रतिडा द सभी मंत्रियों ने स्वागत किया। विजय की योजना तैयार हुई और सेना भयान आरम्भ हुआ। ह की विजय का क्रमबद्ध और विस्तृत वर्णन नहीं मिलता। 


चीनी यात्री द्वारा ने अपने विवाद में केवल इतना लिखा है कि “हर्ष ने 6 वर्ष तक निरन्तर युद्ध यि और पाच भारतीय राज्य र अधिकार कर लिया ठपन शीघ्र ही अपने भाई की हत्या 2 बटाल दिया और अपने को भारत का स्वामी बना लिया।” हर्ष द्वारा जीत जाने वाले य पत्र राज्य छान छ थे तथा ट्रेन इन्हें कब जीता। इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। ना अवश्य है कि इन विजय से हर्ष का लाभग सम्पूर्ण उत्तरी- पूर्वी भारत पर अधिटार गया। अद्र परित्र अभियान पर हैना के अधूरे कथन । यद्यपि समुचित प्रकाश नहीं पड़ता तथापि सम्पूर्ण साहित्य और अभिलेखिक सामग्री से कुछ तथ्य अत्र प्राप्त होते हैं जो निम्नांकित हैं। | 

(1) गौड़ नरेश शशांक पर विजय - 

हर्ष ने सर्वप्रथम अपने भाई राज्यवर्धन की व का प्रतिशोध लेने के लिए एक विशाल सेना लेकर गौड़ या बंगाल के नरेश शशांक आक्रमण किया। पूर्वी भारत में बंगाल या गौड़ का शासक शशांक और कामरूप या आसाम का शासक भास्कर वर्मा दोनों ही शक्तिशाली थे और इन दोनों में परस्पर वैमनस्यता भी थी। अतः हर्ष ने भास्कर वर्मा के साथ सन्धि की । सम्भवतः भास्कर वर्मा ने हर्ष की प्रभुसत्ता को स्वीकार कर लिया हो। इस सन्धि से शशांक की स्थिति बहुत निर्बल हो गयी । पर शशांक के साथ हर्ष ने क्या किया ? उसे कहाँ परास्त किया इसका विवरण नहीं मिलता। गंजाम अभिलेख से पता चलता है कि 619 ई. तक शशांक जीवित था। 


आर्य मंजु श्री मूलकल्प के आधार पर कुछ इतिहासकार कहते हैं कि हर्ष ने शशांक को परास्त तो कर दिया था लेकिन वह उसके राज्य को अपने साम्राज्य का अंग न बना सका था। परन्तु बाद के अभिलेख बताते हैं कि 634 ई. में हर्ष का राज्य गौड़ तक विस्तृत हो गया था। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि शशांक की मृत्यु पर हर्ष ने बंगाल पर पुनः आक्रमण किया और बंगाल पर अधिकार कर लिया। परन्तु उसे पूर्वी बंगाल भास्कर वर्मा को देना पड़ा। आर. सी. मजूमदार का कहना है कि “शशांक की मृत्यु के बाद ही हर्ष ने मगध व उड़ीसा पर अधिकार किया था।” निसंदेह हर्ष ने केवल शशांक से बदला ही नहीं लिया बल्कि अपनी शक्ति का प्रसार उत्तरी भारत के अन्य राज्यों में भी किया। 

शशांक के विरुद्ध हर्ष की कई युद्ध यात्रायें वस्तुत: उसके दीर्घकालीन युद्धों की भूमिका थी । हर्षचरित के साक्ष्य से प्रकट होता है कि हर्ष के सेनापति सिंहनाद ने उसे यह सम्मति दी थी कि उसे इस प्रकार की कार्यवाही करनी चाहिए कि जिससे एक गौड़ाधिपति ही क्यों, अन्य कोई राजा भी इस प्रकार का शशांक की भाँति आचरण न कर सके।

हर्षवर्धन की दिग्विजय अथवा विजयें 

डॉ. वी. सी. पाण्डेय ने हर्ष- शशांक के सन्दर्भ में विभिन्न मतों के प्रकाश में अपने । विचार इस प्रकार प्रकट किये हैं “गौड़ पर आक्रमण कर हर्ष ने शशांक का क्या किया । इसका साफ पता नहीं लगता। इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर बाण और चीनी यात्री दोनों मौन हैं । बाण केवल इतना ही उल्लेख करता है कि हर्ष ने अपने सेनापति भाण्डि को सम्पूर्ण सैन्यबल के साथ शशांक को सबक सिखाने के लिए भेजा था। वह स्वयं अपनी बहिन राज्यश्री की खोज में चला गया था। अन्य कहीं भी किसी स्थल पर बाण हर्ष और शशांक के बीच हुए। संघर्ष का उल्लेख नहीं करता, किन्तु एक स्थल पर बाण ने रक्तिम सूर्यास्त और धब्बे सहित चन्द्रमा (शशांक) का उल्लेख किया है । 


‘हर्षचरित' के अनुवादक द्वेय काबेल और टामस ने इस बात की और हमारा ध्यान आकर्षित किया है कि यह डूबता हुआ लाल सूरज रक्तपात मय युद्धों की ओर संकेत करता है । धब्बे सहित चन्द्रमा (शशांक) गौड़ शासक शशांक की तरफ इशारा करता है । यही मत हर्षचरित के टीकाकार का है। हर्षचरित में इस बात का खूब वर्णन किया गया है कि अपने शत्रु शशांक के विरुद्ध हर्षवर्धन ने महान तैयारी की थी पर अन्य किसी स्थल पर इनके बीच सीधी मुठभेड़ का उल्लेख नहीं है। उसके मन में अपनी छोटी बहन के प्रति अपार स्नेह था और यह स्नेह उसके शशांक के प्रति क्रोधावेग को दबाने में सफल हुआ। 


भ्रातृहंता शशांक के प्रति वह अपनी प्रतिज्ञा तक को भूल गया। इस बात से यह आभासित होता है कि एक तरफ हर्ष जब अपनी छोटी बहिन राज्यश्री को खोजने में व्यस्त था। वहाँ दूसरी तरफ शशांक को प्राण बचाकर भागने का मौका मिल गया और वह हर्ष के चंगुल से भाग निकला। गंजाम में मिले हुए लेख से मालूम होता है कि 619 ई. में शशांक जीवीत था और गंजाम के ऊपर उसका अधिपत्य था । इससे तो यही अनुमान निकलता है कि 606 ई. और 619 ई. के बीच हर्ष शशांक को नष्ट नहीं कर सका और उसकी शक्ति दक्षिण- पश्चिम बंगाल में बनी रही।”

(2) कामरूप पर प्रभुत्व - 

कामरूप का राज्य हर्षवर्धन के प्रभाव क्षेत्र में था। कामरूप नरेश भास्कर वर्मा तथा हर्षवर्धन में मैत्री सम्बन्ध था। इस मत की पुष्टि इस तथ्य से होती है। कि - 
(i) कामरूप नरेश भास्कर वर्मा हर्ष की कन्नौज सभा तथा प्रयाग के दानोत्सव में सम्मिलित होने के लिए आया था। इससे स्पष्ट होता है कि सम्भवतः वह हर्ष के अधीन था। 
(i) भास्कर वर्मा ने अपना दूत भेजकर स्वयं हर्ष से मित्रता का प्रस्ताव किया था। हर्ष
ने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, तभी से भास्कर वर्मा हर्ष का अधीनस्थ मित्र था। 

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