अनुसूचियों की अनुक्रमणिका (पृष्ठ 2.124 से 2.172 तक) भाग 3- (क) वरेण्य ग्रन्थों एवं धार्मिक ग्रन्थों की अनुसूचियां
इसका प्रथम संस्करण 1933 में प्रकाशित हुआ तथा विबिन्दु (:) का योजक चिन्ह के रूप में प्रयोग किया गया। समय-समय पर इसके विभिन्न संस्करण प्रकाशित किये गये और अनुसूचियों पक्ष-परिसूत्रों, योजक चिन्हों में आवश्यक परिवर्तन भी किये गये। इसका छठा संस्करण 1960 में प्रकाशित किया गया तथा आवश्यक परिवर्तनों से युक्त परिशिष्ट के साथ 1963 में इस छठे संस्करण का पुनर्मुद्रण किया गया एवं चौथा पुनर्मुद्रण 1990 में किया गया। रंगनाथन के देहावसान के 15 वर्ष बाद, अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तनों के साथ इसका सातवां संस्करण 1987 में प्रकाशित किया गया था। किन्तु अभी तक इसकी अनुक्रमणिका प्रकाशित नहीं की गई है अत: इसको प्रयोग में लाना कठिन है। प्रस्तुत इकाई में पाठ्यक्रमानुसार विबिन्दु पद्धति के छठे (पुनर्मुद्रित) संस्करण का विवरण दिया गया है। 2. विबिन्दु वर्गीकरण संस्करण 6 (पुनर्मुद्रित) : संरचना व रूपरेखाविबिन्दु वर्गीकरण का पुनर्मुद्रित छठा संस्करण निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया गया है:
भाग 1- नियम (पृष्ठ 1.1 से 1.124 तक) भाग 2- (क) वर्गीकरण अनुसूचियाँ (पृष्ठ 2.1 से 2.123 तक)
(ख) अनुसूचियों की अनुक्रमणिका (पृष्ठ 2.124 से 2.172 तक) भाग 3- (क) वरेण्य ग्रन्थों एवं धार्मिक ग्रन्थों की अनुसूचियां (पृष्ठ 3.1 से
3.53 तक)
(ख) अनुक्रमणिका (पृष्ठ 3.54 से 3.126 तक) इस पुस्तक के पृष्ठों
का व्यवस्थापन सामान्य पुस्तकों से भिन्न है। पृष्ठ संख्या प्रत्येक पृष्ठ के निचले भाग पर अंकित है। प्रत्येक भाग की पृष्ठ संख्या को अलग-अलग श्रेणियों मेंदिया गया है। पृष्ठ संख्या में बिन्दु (.) से पूर्व का अंक संबंधित भाग को सूचित करता है। जबकि बिन्दु (.) से बाद वाला अंक संबंधित भाग में पृष्ठ संख्या को; जैसे, 1.15 का अर्थ है। भाग 1 में 15वां पृष्ठ, 2.120 का अर्थ है भाग 2 में 120वां पृष्ठ, 3.18 का अर्थ है भाग 3 में 18वां पृष्ठ। । नोट:- पुस्तक के प्रारम्भ में आरंभिक पृष्ठों के बाद पृष्ठ 19 से 28 तक एक परिशिष्ठ दिया गया है। 2.1 भाग 1 : नियम | इस भाग में आवश्यक परिभाषाओं प्रायोगिक वर्गीकरण से संबंधित विभिन्न सामान्य नियमों, अनुसूचियों के प्रयोग संबंधी नियमों व्याख्याओं आदि का उदाहरण सहित उल्लेख किया गया है। अध्याय 01 से 04 तक क्रमांक (क्रामक संख्या) (Call Number), वर्गीक (वर्ग संख्या) (Class Number), ग्रंथांक (ग्रंथ संख्या) (Book Number), संग्रहांक (संग्रह संख्या) (Collection Number) का क्रमशः परिभाषा सहित विवरण दिया गया है। तथा इनके प्रायोगिक पक्ष को उदाहरण देकर समझाया गया है। इसके साथ ही अध्याय 02 में इस वर्गीकरण पद्धति द्वारा प्रयोग में लायी गई अंकन पद्धति का भी उल्लेख किया गया है।
अध्याय 05 में संकेन्द्र (Focus) एवं पक्ष (Facet) की अवधारणा के साथ- साथ वर्ग संख्या के निर्माण में प्रयोग में लायी जाने वाली विभिन्न विधियों (Devices) को भी स्पष्ट किया गया है; जैसे-भौगोलिक विधि, विषय विधि आदि।
अध्याय 06 में उन संक्षेपणों (Contractions) का उल्लेख है,
जिनका प्रयोग इस भाग के विभिन्न अनुच्छेदों में किया गया है; जैसे (B.C.)-Basic Class (0503) यहां वृत कोष्ठक में अनुच्छेद की क्रम संख्या अंकित है।| अध्याय 07 में 'प्रोलेगोमेना' पुस्तक का संदर्भ देकर वर्गीकरण के उप-सूत्रों का उल्लेख किया गया है।
अध्याय 06 में सहायक अनुक्रम के सिद्धान्तों तथा अभिधारणाओं का उल्लेख है। अध्याय 1 में मुख्य वर्गों के प्रायोगिक उपयोग के संबंध में जानकारी दी गई है।
अध्याय 2 में सर्व सामान्य एकलों (Common Isolates) के प्रायोगिक उपयोग से संबंधित स्पष्टीकरण तथा नियम उदाहरण देकर प्रस्तुत किये गये हैं।
अध्याय 3 से 5 तक क्रमशः काल एकल, स्थान एकल एवं भाषा एकल के प्रायोगिक उपयोग को उदाहरण देकर समझाया गया है।
अध्याय 6 में दशा संबंध की तीनों जातियों-अन्तर्विषय, अन्तर्पक्ति व अन्तर्पक्ष - संबंधी अवधारणा को प्रायोगिक दृष्टि से उदाहरण देकर समझाया गया है।
अध्याय 7 में वरेण्य (श्रेण्य) ग्रंथ - विधि के प्रायोगिक उपयोग का वर्णन किया गया है; जो भारत विद्या या प्राच्य विद्या तथा अन्य क्षेत्रों से संबंधित श्रेण्य ग्रंथों को व्यवस्थित करने में सहायता प्रदान करती है।
अध्याय 9z (Generalia) से Z (Law) तक संबंधित मुख्य वर्गों के प्रायोगिक उपयोग के नियमों एवं संबंधित विशिष्टताओं को अलग-अलग अध्यायों में दिया गया है। प्रत्येक अध्याय में उस विषय के क्षेत्र का उल्लेख है तथा इसके साथ ही उस विषय में प्रयुक्त पक्षों की तालिका भी दी गई है। इस तालिका से यह जानकारी मिलती है कि संबंधित मुख्य वर्ग में, (क) कितने पक्षों का प्रयोग किया गया है, (ख) प्रत्येक पक्ष के लिये प्रयोग में लाये गये पद को क्या नाम दिया गया है; एवं
ग) प्रत्येक पद के लिये एकल संख्याओं को किस प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है।
उदाहरणार्थ;- मुख्य वर्ग (P-Linguistics) (भाषा शास्त्र) की तालिका निम्न प्रकार से है। (पृष्ठ 1.105)Facet (पक्ष) -Term (पद) (IN) by (एकल संख्या) द्वारा[P] -Language (भाषा) Enumeration (भाग 2 की अनुसूची से) [P2] -Variant (परिवर्ती रूप) Enumeration (भाग 2 की अनुसूची से)
-Stage (चरण) CD (कालक्रम विधि से) [P3] -Element (तत्व) Enumeration (भाग 2 की अनुसूची से) [E] [2P] -Problem (समस्या) Enumeration (भाग 2 की अनुसूची से)
उपर्युक्त तालिका में (P-Linguistics) (भाषा शास्त्र) के व्यक्तित्व (P) पक्ष का तीन स्तरों में प्रयुक्त हुआ है- (P) व्यक्तित्व पक्ष का प्रथम स्तर भाषा के लिये प्रयोग में लाया गया है जिसकी एकल संख्यायें भाग 2 की अनुसूची से प्राप्त होती है; अर्थात भाषा एकल अध्याय 5 से; (P2) व्यक्तित्व पक्ष का दूसरा स्तर है, जो दो प्रकार का है- अर्थात् Variant (भाषा का परिवर्तीरूप) एवं भाषा के विकास का चरण (Stage); भाषा के परिवर्तीरूप के एकल भाग 2 की अनुसूची से तथा विकास का चरण कालक्रम विधि से प्राप्त करने के निर्देश हैं। (P3) व्यक्तित्व पक्ष का तीसरा स्तर है, जो भाषा के विभिन्न तत्वों-वर्ण, शब्द का भाग, शब्द आदि को सूचित करता है तथा इसे भाग 2 की अनुसूची से प्राप्त करना पड़ता है। (E) (2P) समस्या पक्ष को सूचित करता है। इसकी एकल संख्यायें भाग 2 की अनुसूचियों से प्राप्त करनी होती हैं। इसके साथ ही सभी अध्यायों में मुख्य वर्ग से संबंधित बने बनाये वर्गीक उदाहरण के रूप में दिये गये हैं, जो वर्गीकरणकार का मार्ग दर्शन करते हैं। अत: वर्गीकरण करते समय वर्गीकरणकार को इन अध्यायों का अवलोकन करते रहना चाहिये। | इस भाग के अन्त में इस भाग की अनुक्रमणिका प्रस्तुत की गई है। इस अनुक्रमणिका में प्रत्येक पद के सामने संबंधित अध्याय या अनुच्छेद का उल्लेख किया गया है। (पृ. 1.123 से 1.124) 2.2 भाग 2 : वर्गीकरण अनुसूचियाँ
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