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Thursday, January 24, 2019

पुस्तकालय विज्ञान के विभिन्न विद्वानों ने अंकन की परिभाषा

पुस्तकालय विज्ञान के विभिन्न विद्वानों ने अंकन की परिभाषा 

निम्न प्रकार से की है:"किसी वर्गीकरण पद्धति में पदों को सूचित करने के लिए प्रयोग में लाई गई प्रतीकों अथवा सांकेतिक चिन्हों की श्रृंखला को अंकन कहते है, जो अपनी क्रम व्यवस्था के द्वारा वर्गीकरण की व्यवस्था को प्रदर्शित करती है ।"
-डब्लयू सी.बी. सेयर्स | "अंकन प्रतीकों व चिन्हों की एक पद्धति है, जो किसी क्रम को सूचित करते है तथा जिनका प्रयोग पदों या किसी श्रृंखला की इकाईयों या किन्ही वस्तुओं के समूह को सूचित करने के लिये किया जाता है ।"
- एच.ई. ब्लिस "अंकन वर्गीकरण व्यवस्था को यन्त्रेवत बनाने की एक विधि है तथा इसका निर्माण ऐसे प्रतीकों दास होना चाहिए जिनका क्रम सुनिश्चित है ।
- बी. आई. पामर एवं ए.जे. वैल्स "वर्गों तथा उसके उप विभागों के लिए प्रयोग में लाये गये प्रतीकों को उस पद्धति का अंकन कहते हैं" ।
-मारग्रेट, मान "किसी वर्गीकरण पद्धति में वर्गों का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रयुक्त क्रमिक अंकों की व्यवस्था को अंकन कहते हैं ।
| -एस.आर. रंगनाथन उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पुस्तकालय वर्गीकरण पद्धति में प्राकृतिक भाषा के बदले में प्रयुक्त अंकों तथा चिन्हों को ही अंकन कहा जाता है । इन अंकों तथा चिन्हों का अपना क्रमदर्शक मान (Ordinal Value) भी होता है जिसके आधार पर वर्गीकरण पद्धति में वर्गों व उपवर्गों को एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित किया जाता 3. अंकन की आवश्यकता, कार्य और प्रकार (Need, Function and types of Notation)

 3.1 अंकन की आवश्यकता (Need of Notation)

पुस्तकालय वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य पुस्तकालयों को एक यांत्रिक क्रियाविधि प्रदान करना है । जिसके माध्यम से प्रलेखों को सहायक अनुक्रम में व्यवस्थित किया जा सके । सहायक अनुक्रम भी ऐसा होना चाहिये जो विषयों के पदानुक्रम तथा पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट रूप में प्रदर्शित कर सके । प्रलेखों के विषयवस्तु अथवा अन्य बाह्य तत्वों का उल्लेख करने के लिये लेखक विभिन्न भाषाओं व अंकों का प्रयोग करता है जिसके आधार पर एक विषय से सम्बन्धित सभी प्रलेख न तो एक साथ ही व्यवस्थित किये जा सकते है और न ही विषयों के पारस्परिक सम्बन्धों को ही प्रदर्शित किया जा सकता है । पुस्तकालयों का सहायक अनुक्रम में व्यवस्थापन सिर्फ वर्गीकरण की प्रतीक भाषा, जिसे अंकन कहते हैं, के द्वारा ही संभव है, वर्णात्मक व्यवस्थापन (Alphabetical Arrangement) द्वारा नहीं ।
रंगनाथन ने निम्न पाँच कारण बताये है, जो कि वर्गीकरण में अंकन की उपयोगिता को सिद्ध करते हैं:| 1. वर्गानुक्रम का सहायक अनुक्रम में नहीं होना (unhelpfulness of alphabetical
sequence) वर्णमाला के आधार पर विषयों को व्यवस्थित करने से एक ही विषय की पाठ्य सामग्री विभिन्न स्थानों पर बिखर जाती है, अर्थात वह सहायक अनुक्रम में व्यवस्थित नहीं हो पाती है, जबकि कृत्रिम भाषा से प्रलेखों को सहायक अनुक्रम में व्यवस्थित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए हम कुछ विषयों को वर्णानुक्रम और वर्गानुक्रम में व्यवस्थित कर देखें :वर्गानुक्रम
W Political Science Zoology X Economics यहाँ हम देखते है कि वर्णानुक्रम सहायक क्रम नहीं है, क्योंकि इसमें परस्पर सम्बन्धित विषय(जैसे Agriculture और Botony इत्यादि) एक दूसरे से अलग हो जाते है, जबकि वर्गानुक्रम द्वारा परस्पर सम्बन्धित विषय एक दूसरे से सहायक अनुक्रम में व्यवस्थित हो जाते

2. विषयों के नामों में परिवर्तन का प्रभाव (Effect Of Change In Name Of Subject)

समय-समय पर विषयों के नाम शैक्षणिक, वैज्ञानिक, राजनैतिक व अन्य कई कारणों से परिवर्तित होते रहते हैं, जो प्रलेखों की सम्पूर्ण व्यवस्था को प्रभावित करते हैं । विषय का नाम बदलते ही वर्ण क्रम की व्यवस्था से उस विषय का स्थान बदल जाता है, जो कि वर्गीकरण के सिद्धान्त के विरूद्ध है । उदाहरण स्वरूप जिसे आज हम भौतिक शास्त्र (Physics) कहते है । इसे पहले प्राकृतिक दर्शन (Natural Philosophy) कहा जाता था । इसी प्रकार राजनैतिक कारणों से भौगोलिक एकलों यथा (Benaras का Varanasi, Bombay का Mumbai, Ceylon का Srilanka इत्यादि) के नामों में परिवर्तन से प्रलेख भिन्न- भिन्न स्थानों पर व्यवस्थित हो जायेंगे । जबकि कृत्रिम भाषा से जो अंक इनको आवंटित किये गये है, उन पर परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।। 3. वर्णानुक्रम पर पर्यायवाची शब्दों का प्रभाव (Effect of Synonyms on
Alphabetical sequence)
पर्यायवाची शब्दों के उपयोग के कारण वर्णक्रम में विषयों का व्यवस्थापन सहायक अनुक्रम में नहीं हो पाता है । उदाहरण स्वरूप ""Acoustics" और ""sound" दोनों शब्द भौतिक शास्त्र की एक ही शाखा को संबोधित करते है । अगर पाठ्य-पुस्तकों का व्यवस्थापन वर्णक्रम में किया जाए तो पुस्तकें अलग-अलग व्यवस्थित हो जाएंगी । इसी प्रकार कुछ और पर्यायवाची शब्दों से सम्बन्धित उदाहरण निम्न प्रकार हैं: Fuse
4. वर्णानुक्रम पर भाषाओं की विविधता का प्रभाव (Effect of Multiplicity Of
Languages On Alphabetical Sentence)
प्रत्येक भाषा में विषयों के लिए भिन्न-भिन्न नाम प्रयोग किये जाते हैं । जिसके कार एक ही विषय के प्रलेख भिन्न- भिन्न स्थानों पर व्यवस्थित हो जाते हैं । अथवा एक ही नाम से एक साथ व्यवस्थित प्रलेख भिन्न-भिन्न विषयों से सम्बन्धित हो सकते है। उदाहरण स्वरूप अंग्रेजी भाषा का Dry Cell में Trocken Element और फ्रेंच में Pile seche के नाम से जाना जाता है। अत: इसका व्यवस्थापन अंग्रेजी भाषा के D वर्णक्रम के अन्तर्गत होगा, जबकि जर्मन और फ्रैंच में क्रमशः "T' और 'P' के अन्तर्गत होगा। |

5. वर्णानुक्रम पर भिन्नार्थक शब्दों का प्रभाव (Effect Of Homonyms On Alphabetical Sentence)

भिन्नार्थक शब्दों के कारण भी वर्णानुक्रम में प्रलेखों की व्यवस्था सहायक अनुक्रम में नहीं हो पाती है। क्योंकि किसी भी पद एवं शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ हो सकते है । उदाहरण स्वरूप अंग्रेजी शब्द order विभिन्न सन्दर्भो में विभिन्न विषयों का प्रतिनिधित्व करता है जैसेसहायकक्रम(Helpful Order), प्रशासनिक आदेश (Administrative Order), क्रयादेश (purchase Order) इत्यादि।
उपर्युक्त कारणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्णानुक्रम प्रलेखों को पुस्तकालय में सहायक अनुक्रम में व्यवस्थित करने में असफल है। अतः प्रलेखों को अंकन / प्रतीकों पर आधारित वर्गीकृत रूप में सहायक अनुक्रम में व्यवस्थित किया जा सकता है । 3.2 अंकन के कार्य (Fashion of Notation)
अंकन वर्गीकरण पद्धति के अस्तित्व का मूल आधार है। अंकन ही वर्गीकरण पद्धति को उसका स्वरूप व सार्थकता प्रदान करता है। इसके प्रमुख कार्यों का उल्लेख इसकी उपयोगिता के आधार पर भी किया जाता है जो निम्नांकित हैं: 1. अंकन का प्रमुख कार्य विषयों के क्रम को यांत्रिक स्वरूप प्रदान करना है ।

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