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Sunday, January 27, 2019

निम्नलिखित शीर्षकों के वर्गीक बनाइए

निम्नलिखित शीर्षकों के वर्गीक बनाइए

दवबिन्द पद्धति के छठवे संस्करण में स्थान एकलों के दो स्तरों का ही उल्लेख किया गया है- पहला राजनीतिक विभाजनों के रूप में तथा दूसरा प्राकृतिक विभाजनों के रूप में। किन्तु पद्धति के पुनर्मुद्रित संस्करण में दो अन्य स्तरों का प्रावधान किया गया है। ये दो नये स्तर जनसंख्या समूह विभाजन और दिशानुसार विभाजन है। इस प्रकार कुल चार स्तरों का प्रावधान इस पद्धति में है। राजनीतिक विभाजनों का बहुतायत से उपयोग किया जाता है। जनसंख्या समूह विभाजनों तथा दिशानुसार विभाजनों का प्रयोग राजनीतिक विभाजनों के साथ ही हो सकता है, किन्तु प्राकृतिक विशेषताओं वाले विभाजनों का प्रयोग बिना राजनीतिक विभाजनों के साथ भी किया जा सकता है। जब एक से अधिक विभाजनों का प्रयोग करना हो तो, इस संबंध में पद्धति में दिये गये नियमों का पालन करना चाहिये।
| स्थान एकलों को विस्तार प्रदान करने तथा उन्हें विशिष्टता प्रदान करने की दृष्टि से अनेक प्रकार की विधियों का प्रावधान भी पद्धति में किया गया है। भौगोलिक विधि के दवारा स्थान पक्ष के एकलों को प्राप्त करने के निर्देश अनुसूची में तथा नियम भाग में यथा स्थान दिये गये हैं। ऐसे ही प्रावधान अध्यारोपण विधि, कालक्रम विधि व विषय विधि के द्वारा इन एकलों को निर्मित करने के लिये किये गये है। वर्णक्रम विधि का प्रयोग भी जनसंख्या समूह विभाजनों के लिये किया गया है। इस विधि का प्रयोग प्राकृतिक विभाजनों को व्यक्तित्व प्रदान करने के लिए भी किया गया है। संशोधित प्रावधानों के बाद स्थान पक्ष की तालिका, अधिक विस्तृत न होते हुये भी प्रायोगिक वर्गीकरण के लिये एक सम्पूर्ण तालिका है।

इकाई 5 : कालपक्ष [T] का प्रायोगिक उपयोग

7. 3921HT2f 495 1. Economic conditions of Pakistan 2. Oceanography of the Arctic 3. Earthquakes in Gujarat 4. Road transport in Delhi 5. Crimes in Mumbai 6. Rainfall in Barmer (Rajasthan) 7. A trip to Udaipur (Rajasthan) 8. Rail road transport in Zurich (Switzerland) 9. Temperature of Shimla (HP) 10. Higher education in Cambridge (U.K.) 11. Travels to South West India 12. Crimes in North Assam 13. North eastern zone of Asia 14. Climate of Middle-east 15. Folklores of Western Rajasthan. 16. Agriculture in valleys 17. Wheat growing in Gangetic valley 18. Expedition to Himalayas 19. Physical geography of Vindya mountains 20. Wild life in deserts of Africa. 21. Customs of mountain regions of Western Jammu & Kashmir 22. Rice growing in deltas of South West India 23. Economic geography of lakes of Udaipur city 24. Farming of grass in deserts of Jaisalmer (Raj) 25. Chinese philosophy 26. African law 27. Greek architecture 28. Indian music 29. Conference of Indian Library scientists 30. Roman empire 31. Christian countries
32. English speaking states of India 119
देश
33. History of U.N.O. (Established in 1945) 34. Rice growing states of India 35. Under developed countries 36. African countries with gold mines. 4. मुख्य शब्द मातृदेश - जो पुस्तकालय जिस देश में अवस्थित होता है, वह देश उस पुस्तकालय के लिये मातृदेश होता है। विबिन्दु वर्गीकरण पद्धति में ऐसे देश के लिये स्थान पक्ष की एकल संख्या 2 का प्रावधान है। वरेण्य मातृदेश के बाद जिस देश को वरीयता क्रम में लाना हो, उसे मातृदेश के पुस्तकालय, वरेण्य देश मान लेते हैं। जिससे उस देश से संबंधित साहित्य को मातृदेश के बाद वरीयता के क्रम में व्यवस्थित किया जा सके। विबिन्दु वर्गीकरण पद्धति में ऐसे देश के लिये स्थान पक्ष की
एकल संख्या 3 का प्रावधान किया गया है।
9. विस्तृत अध्ययनार्थ ग्रंथ सूची 1. Krishan Kumar, Theory of Classification, Reved.4, New Delhi,
Vikas, Publisher, 1988 2. Ranganathan, S.R. Colon Classification. Ed. 6. (Reprint) Bombay,
Asia Publishing House, 1963 3. Satija, M.P. Manual of Colon Classification. New Delhi, Sterling
Publishers, 1984 4. चाँपावत, जी. एस. विबिन्दु वर्गीकरण, प्रायोगिक अध्ययन, दवितीय संशोधित
संस्करण, जयपुर, आर. बी. एस. ए. पब्लिशर्स (1989)
उद्देश्य

1. कालपक्ष की सामान्य जानकारी देना,

 2. कालपक्ष के स्तरों का ज्ञान प्रदान करना, 3. कालपक्ष के प्रायोगिक उपयोग को समझाना,
4. कालक्रमिक विधि के रूप में कालपक्ष के प्रायोगिक उपयोग की जानकारी देना। संरचना/विषय वस्तु
1. विषय प्रवेश 2. कालपक्ष के स्तर
2.1 कालपक्ष तालिका : विश्लेषण
2.2 संकेतक चिन्ह
3.1 ईसा पूर्व काल (B.C. Time) 3.2 ईसा काल (A.D. Time) 3.3 अन्तिम प्रभावी दशक (LED) 3.4 परिसीमित समय अवधि (Bounded duration of Time) 3.5 भूतकाल एवं भविष्य काल
3.6 भूवैज्ञानिक काल । 4. कालपक्ष का कालक्रम विधि के रूप में प्रायोगिक उपयोग 5. सारांश 6. अभ्यासार्थ प्रश्न 7. मुख्य शब्द
8. विस्तृत अध्ययनार्थ ग्रन्थ सूची। 1. विषय प्रवेश
डॉ. रंगनाथन द्वारा प्रतिपादित विबिन्दु वर्गीकरण पद्धति का अध्याय-3 (पृष्ठ 2.7) कालपक्ष के एकलों से संबंधित है। वस्तुतः यह एक सामान्य अनुसूची है जिसका प्रयोग पद्धति के किसी भी मुख्य वर्ग में किया जा सकता है। पद्धति में इस पक्ष के एकलों का प्रयोग उसी अर्थ में किया गया है, जिस अर्थ में साधरणतया इसे समझा जाता है। इसकी आवश्यकता प्रायः उन सभी विषयों में होती है जहां स्थानीय विवरण या स्थानीय इतिहास का अध्ययन समय के संदर्भ में किया जाता है। पद्धति के अध्याय 3 में जो काल एकलों की तालिका दी गई है उसमें ईसा से पूर्व का काल (B.C.Time) संबंधी एकलों का उल्लेख है, साथ ही ईसवी काल (A.D. Time) से संबंधित एकलों का भी प्रावधान है। इन एकलों को शताब्दी, दशाब्दी, वर्ष के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।

3. कालपक्ष का प्रायोगिक उपयोग

साथ ही लक्षित काल (Featured time) तथा वायुमंडलीय गतिविधियों से होने वाले परिवर्तनों के रूप में मौसम, ऋतुएँ इत्यादि से संबंधित एकल दिये गये हैं। इस प्रकार यह पद्धति किसी विषय के काल से संबंधित विवरण को पूर्ण रूपेण अभिव्यक्त करने में सक्षम है। यद्यपि पद्धति के छठवें संस्करण में काल एकलों को महीने, दिन, घंटों, मिनटों इत्यादि के रूप में प्राप्त करने का प्रावधान नहीं है। पांच मूलभूत श्रेणियों में काल श्रेणी सबसे अधिक अमूर्त (Abstract) तथा सबसे कम मूर्त (Concrete) है। इस श्रेणी को पहचानना अपेक्षाकृत आसान है।
कालपक्ष का संयोजक चिन्ह एकल उल्टा उद्धहरण चिन्ह (') 2. कालपक्ष के स्तर
विबिन्दु वर्गीकरण पद्धति के अध्याय 3 (पृष्ठ 2.7) में कालपक्ष के दो स्तरों का उल्लेख है।
| प्रथम स्तर [T] के रूप में जिन एकलों का उल्लेख है उनके आधार पर ईसा से पूर्व के समय (B.C. Time) को प्रदर्शित किया जा सकता है। इसके लिये दीर्घाक्षरों का प्रयोग किया गया है। उदाहरणार्थ -
A= Before 9999 BC B= 9999 से 1000 BC C= 999 से 1 BC
प्रथम स्तर में ही ईस्वी काल (A.D. Time) को प्रदर्शित करने वाली एकल संख्याओं का भी उल्लेख है। इसके लिये भी रोमन दीर्घाक्षरों D से YC तक का प्रयोग किया गया है। उदाहरणार्थ -

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