पुस्तकालय के सभी महत्वपूर्ण कार्य-कलाप अप्रत्यक्ष रुप से पुस्तकालय वर्गीकरण पर आश्रित है | अतः वर्गीकरण को, व्यापक रुप से, ग्रन्थालयित्व का आधार माना जाता ।।
वर्गीकरण (Classification) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द क्लासिस (Classis) से हुई है । 'क्लासिस' शब्द का अर्थ है श्रेणी/दरजा या वर्ग । प्राचीन रोम में अभिजात वर्ग को कुल/वंश या संपत्ति की वास्तविक अथवा काल्पनिक सामान्य विशेषता के आधार पर छः श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता था, जैसे-स्वामी, दास, धनी, निर्धन आदि । इस प्रकार क्लासिस (classis) शब्द का प्रयोग मनुष्यों के उस वर्ग को सूचित करने के लिये किया जाता था, जिसमें सामान्य रुप से निश्चित विशेषतायें विद्यमान हों तथा जो उसी वर्ग से संबंधित हो ।
साधारणतः सामूहिकीकरण या वर्ग बनाने की प्रक्रिया को वर्गीकरण कहा जाता है ।
एस. आर. रंगनाथन ने अपनी पुस्तक 'प्रालेगोमेना टू लाइब्रेरी क्लैसिफिकेशन' में वर्गीकरण शब्द के अर्थ की विस्तृत रुप से व्याख्या की है । भौतिक वस्तुओं का वर्गीकरण करते समय दो प्रक्रियायें- 'विभाजन' एवं 'सामूहिकीकरण' - अपनाई जाती हैं । रंगनाथन के अनुसार 'विभाजन' का अर्थ है- 'वस्तुओं की दो या दो से अधिक वर्गों में छंटनी करना, जबकि "सामूहिकीकरण' अतिरिक्त रुप से इन वर्गों को पूर्व निर्धारित अनुक्रम में व्यवस्थित करने को सूचित करता है । इसके अतिरिक्त पुस्तकालय वर्गीकरण में अंकन का उपयोग करके प्रलेखों के अनुक्रम को इस प्रकार यांत्रिक बना दिया जाता है कि उनको निधानियों पर व्यवस्थित करना और निधानियों से वापस निकालना बहुत सरल हो जाता है ।
| प्रथम अर्थ में वर्गीकरण 'विभाजन' प्रक्रिया को सूचित करता है । अर्थात् वरीय विशेषता के आधार पर किसी समष्टि की सत्ताओं/वस्तुओं को उप-समूहों में छांटने की प्रक्रिया अथवा समान सत्ताओं/ वस्तुओं को एक ही उप-समूह में रखना एवं असमान सत्ताओं/वस्तुओं को भिन्न उप-समूह में रखना | इस विभाजन के फलस्वरूप वर्गों एवं उप-वर्गों का सिलसिला जारी रहता है।
द्वितीय अर्थ में वर्गीकरण 'सामूहिकीकरण प्रक्रिया को सूचित करता है । इस प्रक्रिया में किसी एक समष्टि का वर्गों में विभाजन करके उन वर्गों को किसी एक निश्चित अनुक्रम में व्यवस्थित किया । जाता है, अर्थात् विभाजन के फलस्वरूप प्राप्त किये गये प्रत्येक वर्ग के क्रम की स्थिति का निर्धारण करके सभी वर्गों को किसी अधिमान्य अनुक्रम में व्यवस्थित किया जाता है ।
तृतीय अर्थ में वर्गीकरण अंकन प्रदान करने की प्रक्रिया को सूचित करता है । तदनुसार विभाजन एवं सामूहिकीकरण के फलस्वरूप उपलब्ध वर्ग- अनुक्रम में प्रत्येक सत्ता (वर्ग ) को एक क्रम सूचक संख्या प्रदान करना जो किसी क्रम-सूचक अंकन पद्धति पर आधारित होती है।
तथा इस प्रकार का अंकन प्रदान करने का उद्देश्य है इस अनुक्रम के रख-रखाव को यांत्रिक स्वरूप देना ।अनुक्रम के रख-रखाव के यांत्रिक स्वरूप का अर्थ है
(क) किसी सत्ता/वस्तु को अनुक्रम से बाहर निकालने के बाद उसको पुन: उसी अनुक्रम मेंअपने निश्चित स्थान पर रखना; अथवा
(ख) उसी अनुक्रम में किसी नवीन सत्ता/ वस्तु का सही स्थान पर सरलता से अन्तर्निवेशन
या बर्हिनिवेशन करना ।
पंचम अर्थ में वर्गीकरण उस प्रक्रिया को सूचित करता है, जहां चतुर्थ अर्थ की उपलब्धि से सभी सत्ताओं को हटा दिया जाता है और केवल आभासी (छद्म) सत्तायें या वर्ग सुरक्षित रख लिये जाते हैं, तथा प्रत्येक वर्ग का एक निश्चित वर्ग संख्या द्वारा निरूपण कर दिया जाता है ।
इस प्रक्रिया के संबंध में निम्नलिखित अवधारणाओं का सहारा लिया जाता है(क) सम्पूर्ण सामूहिकीकरण में पृथक्-पृथक् सत्ताओं के अस्तित्व का उल्लेख नहीं होता, (ख) वर्ग सत्ताओं का स्थान ग्रहण कर लेते हैं, (ग) मूल समष्टि सहित प्रत्येक वर्ग वर्गों का एक वर्ग होता है ।
पंचम अर्थ में वर्गीकरण शब्द का प्रयोग उस समय किया जाता है जबकि या तो वर्गीकरण की जाने वाली समष्टि असीम (अपरिमित) हो या किसी निश्चित समय पर कुछ सत्तायें अज्ञात एवं अज्ञेय हों, भले ही जिस समष्टि का वर्गीकरण करना हो वह सीमित हो ।
2. वर्गीकरण का अर्थ
वर्गीकरण का सामान्य अर्थ है- "अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सत्ताओं (Entities), वस्तुओं या अवधारणाओं या विचारों का सुनियोजित सामूहिकीकरण ।" वर्गीकरण की धारणा मानव जीवन की सभी गतिविधियों के मूल में दिखाई देती है, अर्थात् वह हमारे जीवन का आवश्यक अंग बन गई है । हमारे दैनिक जीवन के अनेक कार्य एवं विचार प्रायः वर्गीकरण की प्रक्रिया से प्रभावित होते है । पंसारी की दुकान, औषध भण्डार एवं वाहन-उपकरण भण्डार के व्यवस्थापन, विभिन्न मोटर वाहनों की पंजीकरण संख्या-पोस्टमैन द्वारा पत्रों के वितरण संबंधी छंटनी से लेकर गृहणियों द्वारा अपने रसोई- भण्डार की व्यवस्था तक में वर्गीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका को देखा व समझा जा सकता है ।वर्गीकरण (Classification) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द क्लासिस (Classis) से हुई है । 'क्लासिस' शब्द का अर्थ है श्रेणी/दरजा या वर्ग । प्राचीन रोम में अभिजात वर्ग को कुल/वंश या संपत्ति की वास्तविक अथवा काल्पनिक सामान्य विशेषता के आधार पर छः श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता था, जैसे-स्वामी, दास, धनी, निर्धन आदि । इस प्रकार क्लासिस (classis) शब्द का प्रयोग मनुष्यों के उस वर्ग को सूचित करने के लिये किया जाता था, जिसमें सामान्य रुप से निश्चित विशेषतायें विद्यमान हों तथा जो उसी वर्ग से संबंधित हो ।
साधारणतः सामूहिकीकरण या वर्ग बनाने की प्रक्रिया को वर्गीकरण कहा जाता है ।
सामान्य विशेषताओं/ लक्षणों के आधार पर सत्ताओं विस्तुओं का एक साथ सामूहिकीकरण
यह एक मानसिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हम सामान्य विशेषताओं/ लक्षणों के आधार पर सत्ताओं विस्तुओं का एक साथ सामूहिकीकरण करते हैं । इस प्रक्रिया में समान वस्तुओं को एक साथ रखा जाता है तथा असमान वस्तुओं या सत्ताओं को अलग कर दिया जाता है । वस्तुओं या सत्ताओं की पारस्परिक समानता या असमानता की पहचान उनमें निहित विशेषताओं/लक्षणों के आधार पर की जाती है । इस प्रकार वर्गीकरण प्रक्रिया में समान गुण धर्म वाली वस्तुओं या सत्ताओं की पहचान करने का प्रयत्न किया जाता है, जैसे-मनुष्य, पशु, पक्षी, गाय, बकरी, स्त्री, पुरुष आदि । किन्तु यह ध्यान रहे कि 'समानता' शब्द का प्रयोग केवल किसी वर्ग की पहचान करने के लिये किया जाता है, इसके वास्तविक या तात्विक अर्थ में नहीं; जैसे- 'भारतीय', व्यक्तियों के वर्ग के रुप में, कुछ अंशों (लक्षणों) में सदृश हैं, किन्तु वे पूर्णरूप से सर्वसम/समरुप नहीं है । इस प्रकार वर्ग उन सत्ताओं/वस्तुओं का समूह है जो कुछ अंशों में समान है एवं जो कुछ सामान्य विशेषताओं या लक्षणों से युक्त है तथा ये सामान्य लक्षण उसकी, वस्तुओं के किसी अन्य वर्ग से, भिन्नता सुनिश्चित करने के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं । अत: वस्तुओं या अवधारणाओं के श्रेणीकरण को भी वर्गीकरण कहते हैं ।एस. आर. रंगनाथन ने अपनी पुस्तक 'प्रालेगोमेना टू लाइब्रेरी क्लैसिफिकेशन' में वर्गीकरण शब्द के अर्थ की विस्तृत रुप से व्याख्या की है । भौतिक वस्तुओं का वर्गीकरण करते समय दो प्रक्रियायें- 'विभाजन' एवं 'सामूहिकीकरण' - अपनाई जाती हैं । रंगनाथन के अनुसार 'विभाजन' का अर्थ है- 'वस्तुओं की दो या दो से अधिक वर्गों में छंटनी करना, जबकि "सामूहिकीकरण' अतिरिक्त रुप से इन वर्गों को पूर्व निर्धारित अनुक्रम में व्यवस्थित करने को सूचित करता है । इसके अतिरिक्त पुस्तकालय वर्गीकरण में अंकन का उपयोग करके प्रलेखों के अनुक्रम को इस प्रकार यांत्रिक बना दिया जाता है कि उनको निधानियों पर व्यवस्थित करना और निधानियों से वापस निकालना बहुत सरल हो जाता है ।
'वर्गीकरण' शब्द का प्रयोग
'वर्गीकरण' शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है | एस. आर. रंगनाथन के अनुसार इसका प्रयोग निम्नलिखित पांच अर्थों में किया जाता है| प्रथम अर्थ में वर्गीकरण 'विभाजन' प्रक्रिया को सूचित करता है । अर्थात् वरीय विशेषता के आधार पर किसी समष्टि की सत्ताओं/वस्तुओं को उप-समूहों में छांटने की प्रक्रिया अथवा समान सत्ताओं/ वस्तुओं को एक ही उप-समूह में रखना एवं असमान सत्ताओं/वस्तुओं को भिन्न उप-समूह में रखना | इस विभाजन के फलस्वरूप वर्गों एवं उप-वर्गों का सिलसिला जारी रहता है।
द्वितीय अर्थ में वर्गीकरण 'सामूहिकीकरण प्रक्रिया को सूचित करता है । इस प्रक्रिया में किसी एक समष्टि का वर्गों में विभाजन करके उन वर्गों को किसी एक निश्चित अनुक्रम में व्यवस्थित किया । जाता है, अर्थात् विभाजन के फलस्वरूप प्राप्त किये गये प्रत्येक वर्ग के क्रम की स्थिति का निर्धारण करके सभी वर्गों को किसी अधिमान्य अनुक्रम में व्यवस्थित किया जाता है ।
तृतीय अर्थ में वर्गीकरण अंकन प्रदान करने की प्रक्रिया को सूचित करता है । तदनुसार विभाजन एवं सामूहिकीकरण के फलस्वरूप उपलब्ध वर्ग- अनुक्रम में प्रत्येक सत्ता (वर्ग ) को एक क्रम सूचक संख्या प्रदान करना जो किसी क्रम-सूचक अंकन पद्धति पर आधारित होती है।
तथा इस प्रकार का अंकन प्रदान करने का उद्देश्य है इस अनुक्रम के रख-रखाव को यांत्रिक स्वरूप देना ।अनुक्रम के रख-रखाव के यांत्रिक स्वरूप का अर्थ है
(क) किसी सत्ता/वस्तु को अनुक्रम से बाहर निकालने के बाद उसको पुन: उसी अनुक्रम मेंअपने निश्चित स्थान पर रखना; अथवा
(ख) उसी अनुक्रम में किसी नवीन सत्ता/ वस्तु का सही स्थान पर सरलता से अन्तर्निवेशन
या बर्हिनिवेशन करना ।
वर्गीकरण परिवर्धित समष्टि के पूर्ण सामूहिकीकरण की प्रक्रिया
चतुर्थ अर्थ में वर्गीकरण परिवर्धित समष्टि के पूर्ण सामूहिकीकरण की प्रक्रिया को सूचित करता है, अर्थात् यह प्रक्रिया तृतीय अर्थ में उपलब्ध परिणाम को नया स्वरूप प्रदान करती है । इस प्रक्रिया में एक परिवर्धित समष्टि के आनुक्रमिक सामूहिकीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप उपलब्ध सत्तायें एवं आभासी सत्तायें अपनी- अपनी वर्ग संख्या के साथ एक सह- संबंधी (फिलियेटरी ) अनुक्रम में व्यवस्थित कर दी जाती हैं ।पंचम अर्थ में वर्गीकरण उस प्रक्रिया को सूचित करता है, जहां चतुर्थ अर्थ की उपलब्धि से सभी सत्ताओं को हटा दिया जाता है और केवल आभासी (छद्म) सत्तायें या वर्ग सुरक्षित रख लिये जाते हैं, तथा प्रत्येक वर्ग का एक निश्चित वर्ग संख्या द्वारा निरूपण कर दिया जाता है ।
इस प्रक्रिया के संबंध में निम्नलिखित अवधारणाओं का सहारा लिया जाता है(क) सम्पूर्ण सामूहिकीकरण में पृथक्-पृथक् सत्ताओं के अस्तित्व का उल्लेख नहीं होता, (ख) वर्ग सत्ताओं का स्थान ग्रहण कर लेते हैं, (ग) मूल समष्टि सहित प्रत्येक वर्ग वर्गों का एक वर्ग होता है ।
पंचम अर्थ में वर्गीकरण शब्द का प्रयोग उस समय किया जाता है जबकि या तो वर्गीकरण की जाने वाली समष्टि असीम (अपरिमित) हो या किसी निश्चित समय पर कुछ सत्तायें अज्ञात एवं अज्ञेय हों, भले ही जिस समष्टि का वर्गीकरण करना हो वह सीमित हो ।
No comments:
Post a Comment